Sunday, December 28, 2008

mumqin hi to hai....

कह दो एक बार तो चाँद तोड़ना मुमकिन हो जाए
तुम्हारे तस्सव्वुर में आके ईमान जोड़ना मुम्क़िन हो जाए

आधी उम्र तो बीत गई हो शायद
फ़िर भी कहीं मुस्कान जोड़ना मुम्क़िन हो जाए

रफ्ता - रफ्ता बीत रही है आंखों की मुद्दत
आपके आने से अरमान जोड़ना मुम्क़िन हो जाए

कहीं खो जायें हम आके अख्तियार में
ख़ुद को इंसान जोड़ना मुम्क़िन हो जाए

आपकी आंखों को देखा......
अब मुक़द्दर का इन्तज़ाम होना मुम्क़िन हो जाए

हो गया था लहू सख्त ज़ख्म खा-खा के
अब इसका रिसना परेशां होके मुम्क़िन हो जाए....

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