Wednesday, December 17, 2008

मर जायेंगे एक दिन, कोई सुननेवाला नहीं होगा....
न रक़ीब न हमदम न हमसफ़र कहीं होगा....
पत्थर न मारो यहाँ, दीवानों का शहर है

जो ये भी उठ गया जहाँ से....
किसको मुहब्बत पर कभी यक़ीन होगा!!