हर वक़्त की गुंजाइश में
हर वक़्त निकल जाता है
हर शोर छुपी ख़ामोशी से
एक गूँज पास लाता है
हर दरख़्त ढूंढ ढूंढ के
अपने रुके दबे सैलाब को
नसों के बस पास मरोड़ता है …
रुका, दबा, थमा ही पाता है …
ये दिल भी क्या अजीब चीज़ है मिर्ज़ा !
दौड़ता है तो बस आँधियों की तरह
थमता है तो थमता ही चला जाता है ……
हर वक़्त निकल जाता है
हर शोर छुपी ख़ामोशी से
एक गूँज पास लाता है
हर दरख़्त ढूंढ ढूंढ के
अपने रुके दबे सैलाब को
नसों के बस पास मरोड़ता है …
रुका, दबा, थमा ही पाता है …
ये दिल भी क्या अजीब चीज़ है मिर्ज़ा !
दौड़ता है तो बस आँधियों की तरह
थमता है तो थमता ही चला जाता है ……